योग विज्ञान : आगाज तो अच्छा है

योग विज्ञान : आगाज तो अच्छा है

योग के लिहाज से नए साल की अच्छी शुरूआत हुई है। बीते दस दिनों के भीतर कई ऐसी गतिविधियां हुईं हैं, जो योग विज्ञान के लिए बड़े महत्व की हैं। जैसे,107वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस में ग्रामीण विकास में विज्ञान व प्रौद्योगिकी की जगह योग विज्ञान का छा जाना, योग के प्रचार-प्रसार में मीडिया की भूमिकाओं का सम्मान, परमहंस योगानंद की जयंती के बहाने क्रियायोग के चिकिसकीय प्रभावों की स्वीकार्यता, मुंबई में विश्व का पहला योगा कॉल सेंटर का खुलना आदि आदि। इस बार के कॉलम में प्रस्तुत है वैसी ही कुछ खास खबरों का विश्लेषण।

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पहले 107वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस की बात। इस साल बेंगलुरू के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के परिसर में 3-7 जनवरी तक भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन हुआ। थीम था - विज्ञान व प्रौद्योगिकी और ग्रामीण विकास। पर एक सत्र योग विज्ञान पर भी था। इसमें में भाग लेने के लिए देश के कई प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों के चर्चित चिकित्सक पहुंचे थे। प्रतिभागियों ने योग अनुसंधान के नतीजों के आधार पर अपने विचार साझा किए। जब सिजोफ्रेनिया पर योग के सकारात्मक प्रभावों की चर्चा हुई तो वह देश-विदेश की मीडिया की सुर्खियां बन गई

इसकी वजह भी थी। बीबीसी ने हाल ही देश के कई वरिष्ठ मनोचिकित्सकों के हवाले से कहा था कि मानसिक बीमारियों के सबसे गंभीर विकार सिजोफ्रेनिया का इलाज नहीं होने पर करीब 25 प्रतिशत मरीजों के खुदकुशी कर लेने का खतरा होता है। भारत में विभिन्न डिग्री के सिजोफ्रेनिया से लगभग 40 लाख लोग पीड़ित हैं। इस बीमारी के इलाज से वंचित करीब 90 फीसदी रोगी भारत जैसे विकासशील देशों में हैं। यह बीमारी प्रति एक हजार वयस्कों में से करीब 10 लोगों और ज्यादातर 16-45 आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करती है। कुल मिलाकर एक हजार में पांच लोग इस गंभीर बीमारी की चपेट में हैं।

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सिजोफ्रेनिया पर शोध-प्रपत्र डॉ बीएन गंगाधर का था। वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (नीमहांस) के निदेशक हैं। उनके शोध का निष्कर्ष है कि दवाओं के साथ योग की पंचकोशीय साधनाओं से साधक की अंतः चेतना का विकास होता है। मन और शरीर के विकार दूर होते हैं। इच्छा, रुचि, भावना, आकांक्षा, बुद्धि, विवेक, गुण, स्वभाव, विचारधारा, कार्यप्रणाली आदि में भी ऐसा अद्भुत सतोगुणी परिवर्तन होता है, जिसके कारण जीवन की सभी दिशाए आनंद से परिपूर्ण हो जाती है। शोध के दौरान देखा गया कि व्यायाम के साथ दवाएं लेने वालों की तुलना में योगाभ्यासों के साथ दवाएं लेने वाले करने वाले मरीजों की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ था। हालांकि ध्यान संबंधी अभ्यासों को इस बीमारी के लिए शुरूआती तौर पर सही नहीं पाया गया। डॉ गंगाधर ने जिस वैज्ञानिक शोध की बात की, उसे स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान में किया गया था। इसके लिए 392 मरीजों का चयन किया गया था।

वैसे, देश के परंपरागत योग के संस्थानों में योगाभ्यासों के जरिए सिजोफ्रेनिक को लाभ पहुंचाने की बात पुरानी है। योगाचार्य तो अस्सी के दशक से ही सिजोफ्रेनिया के मरीजों को योग से मिलने वाले लाभों की चर्चा करते रहे हैं। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती 1979 - 1980 के दौरान यूरोप और आस्ट्रेलिया में योग विज्ञान पर काम कर रहे थे तो उनसे जगह-जगह सिजोफ्रेनिया के मरीजों के परिजन मिलते थे। स्वामी जी ने अपने व्याख्यान में चर्चा की है कि हठयोग, राजयोग और अंत में ज्ञानयोग की मदद से सिजोफ्रेनिक काफी हद तक स्वस्थ हो जाते थे। पर समस्या तब आती थी जब वे फिर से उसी माहौल में रहने जाते थे, जहां रहते हुए बीमारी उभरी थी।

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बीते 5 जनवरी को परमहंस योगानंद की 127वीं जयंती थी। जाहिर है कि जब उनकी चर्चा हुई तो क्रियायोग की भी चर्चा होनी ही थी। पश्चिमी देशों में क्रियायोग पहुंचाने में उनकी भी बड़ी भूमिका रही है। महाराष्ट्र इंस्टीच्यूट ऑफ डेंटल साइंस एवं रिसर्च के पीरियडोनटोलॉजी विभाग के समीर ए जोप और   श्रीश्री आयुर्वेद ट्रस्ट बाह्य रोगी विभाग के राकेश ए जोप के अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि क्रियायोग न केवल तनाव और चिंता के इलाज के लिए, बल्कि पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी), अवसाद, मादक द्रव्यों के सेवन और अपराधियों के पुनर्वास के लिए भी प्रभावी है। फ्रांस के चिकित्सक हेनरी गैस्टोट और एनएन दास ने पहली बार पच्चास के दशक में क्रियायोग को विज्ञान की कसौटी पर खरा पाया था। उसके बाद से कई अध्ययन किए जा चुके हैं। सभी नतीजों से क्रियायोग के महत्व का पता चला।

योगाभ्यासियों के लिए इस साल की एक अच्छी खबर मुंबई से है। वहां विश्व का पहला योगा कॉल सेंटर खुला है। यह सालो भर सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। कोई भी व्यक्ति 9820560142 पर फोन करके योग के बारे में मुफ्त राय ले सकता है। मुंबई स्थित योग संस्थान ने योगमेव जयते के नारे के साथ यह कॉल सेंटर शुरू किया है। योग की महत्ता समझ में आने के बाद योग बेहद लोकप्रिय हुआ है। योग प्रशिक्षकों की भी मांग उसी अनुपात में बढ़ी है। इसका लाभ ऐसे लोग भी लेने लगे हैं, जिन्हें योग और कसरत में खास फर्क समझ में नहीं आता। नतीजा है कि अनेक योगाभ्यासियों को लाभ के बदले हानि ही हो जाती है और उनका योग पर से भरोसा उठने लगता है। कुछ लोग टीवी देखकर या पुस्तकें पढ़कर योगाभ्यास करते हैं। योग कॉल सेंटर से योगाभ्यासियों के साथ ही योग प्रशिक्षकों को भी लाभ मिल सकता है। देश में ऐसे कॉल सेंटर सरकारी स्तर पर भी खोले जाएं तो बेहतर होगा।

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कन्याकुमारी में एक अनोखा योग शास्त्र समागम हुआ। विवेकानंद केंद्र में आयोजित तीन दिवसीय समागम इस मायने में खास रहा कि उसमें योगाभ्यासों के बदले योग ग्रंथों और योग सूत्रों की पांडित्यपूर्ण चर्चा हुई। योग ग्रंथों यथा पतंजलि योग सूत्र, हठप्रदीपिका, घेरण्ड संहिता, शिव संहिता, योग संहिता, भगवद गीता, वशिष्ठ संहिता आदि पर मंथन हुआ। समागम का मुख्य उद्देश्य योग शास्त्र को मानवता के करीब लाना, प्रतिभागियों को योग ग्रंथों का अध्ययन करके समझ बढ़ाने के लिए प्रेरित करना, योग ग्रंथों और आमतौर पर उपलब्ध योग प्रथाओं के बीच तुलनात्मक अध्ययन हेतु रुचि विकसित करना और योग के वास्तविक उद्देश्य से अवगत करना था।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मीडिया सम्मान भी नए साल की बड़ी खबर है। ऐसा पहली बार हुआ कि योग के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तीस मीडिया संस्थानों को केंद्र सरकार की ओर से यह सम्मान दिया गया। आठ सम्मान समाचार पत्रों को, आठ सम्मान टेलीविजन चैनलों को और 11 सम्मान रेडियो को मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्रसभा की ओर से सन 2014 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा होने के बाद से भारतीय मीडिया इसे खासा तवज्जो देता रहा है। इसके पहले हिंदी मीडिया में तो यदाकदा परंपरागत योग को जगह मिल भी जाती थी। पर अंग्रेजी मीडिया में योग की जगह कसरतों को ही तवज्जो मिलता रहा है। ऐसे में बदली हुई परिस्थिति में सभी भाषाओं की मीडिया में योग को अहमियत मिलने के लिहाज से मीडिया सम्मान को हर वर्ग से सराहना मिली है।

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पुनश्च :  योग का मूल उद्देश्य आत्मज्ञान दिलाना है। पर प्रकृति से एक भूल हो गई। आदमी को अपने भीतर झांकने वाला बनाया जाना चाहिए था, बना दिया गया बाहर की ओर देखने वाला। यहीं से बहुत सारी समस्याएं आ खड़ी हुईं। बेंगलुरू स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसन्धान संस्थान के संस्थापक कुलपति डॉ एचआर नागेंद्र ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस में ‘योग विज्ञान’ पर आयोजित सत्र का उद्घाटन करते हुए जैसे ही यह विचार व्यक्त किया, कुछ मीडिया संस्थानों की त्योरियां चढ़ गईं। फिर पन्ने रंग दिए यह कहते हुए कि देखो, यह आदमी किस तरह असंगत बातें कर रहा है। समस्याओं के लिए ब्रह्मा जी को दोषी ठहरा रहा है। बात बढ़ी तो परंपराग योग के जानकार श्री नागेंद्र के समर्थन खड़े हो गए। कहा – हे भगवान, उन नादानों का माफ कर, जिन्हें श्री नागेंद्र की बातों का भावार्थ समझ में नहीं आया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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